रिपोर्ट- गाज़ियाबाद से चौधरी अफसर की खास रिपोर्ट
कहां है बाढ़ सुरक्षा और उसकी निगरानी राहत प्रबंधन तंत्र?~दिनेश गुर्जर
गाजियाबाद/ निगरानी तंत्र की लापरवाही से यमुना नदी के तटबंध रिसाव से बांध टूटने से आई बाढ़ से हुए जान-माल और आर्थिक नुकसान की भरपाई कौन करेगा, कौन होगा इसका जिम्मेदार?~दिनेश गुर्जर लोनी विधान सभा अध्यक्ष
दोस्तों देश प्रदेश की अजीब विडंबना है कि देश के दर्जनों प्रदेश बाड की चपेट में हैं और हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री अन्य प्रमुख नेता केवल इन क्षेत्रों का कोई हवाई दौरा कर रहे हैं, तो कोई अन्य साधनों से जाकर तो कोई नैट व सैटेलाइट से ही हालात का जायजा ले रहे हैं और केवल हमदर्दी मददगार होने दिखावा कर अपनी सरकार की और शासन प्रशासन की लापरवाही, गैरज़िम्मेदारी भ्रष्ट्राचार से ध्यान हटाने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें जनता की बहुत चिंता है लेकिन असलियत इसके एक दम उल्टी हैं।
क्या आप जानते हैं कि नदियों के रख रखाव व नदियों में बाढ़ आने पर बाढ़ पीड़ितों के लिए आपदा राहत प्रबंधन का भारी भरकम वार्षिक बजट होता है,जो कागजी खानापूर्ति कर लगभग सारा ही खर्च हो जाता है इसमें सारा खेल यही है?
देश प्रदेश के ज़िम्मेदार जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने वाली लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते वाले नागरिकों से सवाल है कि क्या कभी देश प्रदेश के मुखिया ने बारिश से पहले दौरा कर कि बाढ़ के हालातों से निपटने के लिए शासन प्रशासन द्वारा क्या क्या क़दम उठाए गए हैं। कहां कहां कितने काम बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ सुरक्षा, राहत प्रबंधन या बांध और नहर के तटबंधों में मरम्मत कार्य किए गए हैं, कितनी धन राशि खर्च की गई या बाढ़ क्षेत्रों का दौरा करते हुए किसी अधिकारी पर गैर ज़िम्मेदारी और लापरवाही बरतने पर कार्रवाई की गई कि हालातों से निपटने की तैयारियां क्यों नहीं की गई? जबकि अच्छी खासी रकम बाढ़ से बचाने व रख रखाव राहत प्रबंधन के नाम पर पहले ही हड़प ली जाती है?
कोई भी सम्मानित नेता, बुद्धिजीवी और पत्रकार ये जानने का प्रयास क्यों नहीं करता कि इस क्षेत्र में मरम्मत व रख रखाव पर कुल कितनी रकम चन्द दिनों पहले तक खर्च की गई और अगर खर्च नहीं हुईं तो क्यों ?
हम भी कभी ये जानने का प्रयास नहीं करते और सोच बैठते हैं कि सरकार का पैसा है हमे क्या ? लेकिन नहीं वो पैसा हमारे खून पसीने मेहनत की कमाई से सरकार को दिए टैक्स का पैसा है?
नदियों में आईं बाढ़ व जल भराव से हमारी सड़कों को भी भारी नुक्सान होता है और फिर सड़को की मरम्मत रखरखाव पर भी खासी रकम जो हजारों करोड़ खर्च करनी पड़ती है। ये बहुत लम्बा खेल है और ये खेल एक दो नहीं हजारों करोड़ का हर साल वार्षिक बजट को खानापूर्ति कर हड़पने में होता है?
हम अगर अभी नहीं जागे तो यह बाढ़ से सुरक्षा राहत प्रबंधन और रखरखाव के नाम पर वार्षिक बजट के हजारों करोड़ों रुपए हड़पने का खेल आगे भी जारी रहेगा?
हमारा ध्यान भटकाने के लिए सम्मानित नेता, पत्रकार और सरकार प्रायोजित बुद्धिजीवी व विपक्षी नेताओ की चुप्पी, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलते रहेंगे और किसानों सहित आम आदमी का हर साल जान माल सम्मान अर्थिक नुक़सान और स्वास्थ का नुकसान होता रहेगा।
सवाल करना सीखो क्यू कि सरकार जो भी वार्षिक बजट का हजारों करोड़ रूपए सालाना खर्च करती हैं वो हमारा पैसा है ना कि नेताओं अधिकारियों और ठेकेदार का?
हमे सजग होकर लोकतंत्र को साम्राज्यवादियों के चंद कुलीन पूंजीपतियों के राजनेतिक गुलामी के प्रतीक, संगठित तानाशाही के काले साए की गिरफ्त से बाहर निकालना होगा अन्यथा ये त्रासदी कमोबेश हर क्षेत्र में यूं ही हम झेलते रहोगे?
बाढ़ उतरने के बाद सामान्य हालात होने पर जानकारी जुटाओ कि राहत व बचाव कार्यों सहित मरम्मत के नाम पर कितना पैसा खर्च हुआ और प्राप्त जानकारी को परखो कि जानकारी सही है या ग़लत? जागरूक नागरिक बनो, तभी देश तरक्की कर सकता है।