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रिपोर्ट- आरिफ चौधरी

गाजियाबाद- (अहमसत्ता) शहजाद प्रधान ग्राम  मसुरी निवासी ने अहमसत्ता अखबार से बात करते हुए बताया की मुसलमानों को ज़कात देना मतलब अपने माल को शुद्ध करना है। अपनी मेहनत की कमाई की ज़कात का पैसा कुरान के आदेशों का पालन करते हुए अपने नज़दीकी रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों और ऐसे लोगो की मदद में खर्च करना चाहिए| जिनके हालात से वो अच्छी तरह वाकिफ़ हों। भारत के अमीर मुसलमान अगर अपनी ज़कात को सही तरीके से सही लोगों तक पहुंचाए तो कुछ दशकों में ही सर्व समाज की ग़रीबी दूर हो सकती है। ऐसा मानना है की इससे देश में ग़रीबी का ग्राफ नीचे लाने में भी मदद मिलेगी। तो इस रमज़ान में मुसलमान ज़कात माफिया से बचें और ज़कात के असली मुस्तहिक़ हकदार को ज़कात दें।

शहजाद चौधरी ने आगे बात करते हुए बताया की इस्लाम ने अमीर लोगों की आमदनी में एक हिस्से पर समाज के ग़रीब, मजबूर, लाचार, मोहताज और समाज के सबसे निचले पायदान पर ज़िंदगी गुज़र बसर करने वालों का हक़ तय कर दिया है. सदक़ा, फितरा, ख़ैरात और ज़कात के ज़रिए ये हक़ अदा करने का हुक्म दिया है. हुकम ये भी दिया है कि मदद इस अंदाज़ में की जाए कि मदद करने वाला अहसान न जताए और मदद लेने वाले के आत्म सम्मान को भी ठेस न पहुंचे। इसका सही तरीका यह है कि अमीर लोग सबसे पहले अपने ग़रीब रिश्तेदारों की तरफ मदद का हाथ बढाएं, फिर अपने पड़ोसियों और दोस्तों में उन लोगों की मदद करे जो आपकी मदद के मुस्तहिक़ हैं.और ऐसे लोगों की भी ज़कात और सदके से मदद की जा सकती है जो कभी अमीर थे लेकिन बुरे वक्त की मार ने उन्हें आर्थिक तंगी मे धकेल दिया है. ऐसे लोग शर्म के मारे हाथ नहीं फैलाते।

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