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रिपोर्ट-आरिफ कस्सार
हापुड़- (अहमसत्ता) खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का है बल्कि इंसान जाति को प्रेम,भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है।अहमसत्ता से खास बातचीत करते हुए माहे रमजान की फजीलत बताते हुए ग्राम बझेड़ा कलां निवासी नदीम प्रधान ने कहा रमजान का महीना अल्लाह से इनाम लेने का महीना है।इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं।इस माह में दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है।रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण,अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।गांव बझेड़ा कलां निवासी समाज सेवी डॉ आदिल ने कहा रमजान का महीना इसलिए भी अहम है क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में अवतरण शुरू किया था।रहमत और बरकत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (अशरों) में बांटा गया है। इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर रहमतों की बारिश करता है।दूसरे अशरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा अशरा दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है।

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