आखिर इस मुर्गी के नाम पर क्यों हो गया बवाल? लोगों ने दी आंदोलन की चेतावनी

Date: 2025-07-19
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मध्यप्रदेश के हरदा जिले में एक अनोखा विवाद सामने आया है, जहां एक मुर्गी की प्रजाति के नाम को लेकर नर्मदीय ब्राह्मण समाज और अन्य हिंदू संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज किया। विवाद की जड़ है मुर्गी की एक प्रजाति का नाम 'नर्मदा', जो मध्यप्रदेश की पवित्र और जीवनदायिनी मानी जाने वाली मां नर्मदा नदी के नाम पर रखा गया है।  इस नाम को लेकर स्थानीय लोगों ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचने का आरोप लगाया है और इसे तत्काल बदलने की मांग की है।

मामला हरदा जिले के लाल बहादुर शास्त्री पशुपालन कॉलेज से जुड़ा है। कॉलेज ने बुधवार को एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें पोल्ट्री प्रशिक्षण फार्म के तहत स्वरोजगार के लिए मुर्गे-मुर्गियों की तीन प्रजातियों—कड़कनाथ, नर्मदा निधि और सोनाली—की बिक्री की जानकारी दी गई थी। विज्ञापन में 'नर्मदा' नाम की प्रजाति का उल्लेख होने पर नर्मदीय ब्राह्मण समाज सहित अन्य हिंदू संगठनों ने आपत्ति जताई। उनका कहना है कि मां नर्मदा, जो सनातन धर्म के अनुयायियों और नर्मदा नदी के भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है, के नाम पर मुर्गी की प्रजाति का नामकरण करना अपमानजनक है।

नर्मदीय ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष अशोक पराशर ने इस मुद्दे पर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए कहा, "मां नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि हम सभी की जीवनदायिनी और आस्था का केंद्र है। उनके नाम पर मुर्गी की प्रजाति का नाम रखना हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। हम मांग करते हैं कि इस विज्ञापन से 'नर्मदा' नाम तत्काल हटाया जाए।" समाज ने चेतावनी दी है कि यदि इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो वे आगे आंदोलन करेंगे।

विवाद बढ़ने पर कॉलेज संचालक डॉ. राजीव खरे ने सफाई दी कि मुर्गी की प्रजाति का नामकरण उनके कॉलेज ने नहीं किया है। उन्होंने बताया कि ये नाम जबलपुर के नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के एक पोल्ट्री केंद्र से लिया गया है, जहां से मुर्गियाँ खरीदी गई थीं। खरे ने कहा, "हमारा इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं था। विज्ञापन में उल्लिखित प्रजातियों के नाम—कड़कनाथ, नर्मदा निधि और सोनाली—जबलपुर के पोल्ट्री केंद्र से ही आए हैं।"

आपको बता दें कि 'नर्मदा निधि' एक संकर मुर्गी प्रजाति है, जिसे नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर ने विकसित किया है। यह प्रजाति कड़कनाथ और जबलपुर कलर (Jabalpur Colour) प्रजातियों के संकरण से तैयार की गई है। इस प्रजाति को ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए सस्ता, पौष्टिक और रोग-प्रतिरोधी विकल्प के रूप में विकसित किया गया था, जो कम लागत में पालन के लिए उपयुक्त है। यह मुर्गी प्रति वर्ष लगभग 180 अंडे देती है, जो सामान्य देसी मुर्गियों (45 अंडे प्रति वर्ष) की तुलना में कहीं अधिक है। इसके मांस और अंडों की कीमत भी बाजार में अन्य प्रजातियों की तुलना में कम है।

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